सरीला:- ग्रामीण अचंल में जहां होली को बड़े ही उत्साह से मनाया जाता था, वहां अब होली के प्रति कोई खास उत्साह दिखाई दे रहा। होली में महज कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन अब होली की आहट देने वाले वहीं पुराने होली गीत के मदहोश कर देने वाली धुन और गीत सुनाई नहीं दे रहे। खास तौर से सांझ ढले जोगीरा साराररा तो अब सुनने को ही नहीं मिलता, लेकिन अब भी कहा जाए तो आजकल के अश्लील होली गीतों पर पुराने होली गीत भारी पड़ते हैं। दरअसल, गांवों में वसंत ऋतु के आगमन से ही गांवों के बुजुर्गों द्वारा फाग गीतों के मस्ती भरे बोल सुनाई देने लगते थे। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि फाल्गुन महीना शुरु होते ही गांवों की गलियों में शाम को झाल, मंजीरा, ढोलक आदि लेकर श्रृंगार रस से भरी फागुनी गीतों की बौछार होने लगती थी। बस जो भी आता उसी रंग में रंग जाता इससे भाइचारे को मजबूती मिलती। महिलाएं बताती हैं कि होली की इस ठिठोली से मुहल्लों की घरों से महिलाएं फागुनी गीतों को सुनने के लिए आतुर हो जाती थी। अब वह सब बात नहीं रह गई है। गीतों में फूहड़ता आ गई है। बदलते दौर में अश्लील गीतों के आगे गांवों में अब फाग के राग नहीं सुनाई देती है। होली के पुराने गीतों पर पूर्ण रूप से अश्लीलता हावी होने लगी है। ऐसे में होली की मस्ती व उमंग भी गायब होती जा रही है। अब होली खेलैय रघुवीरा अवध में, होली खेलैय रघुवीरा के बोल बदल गए हैं। समय के साथ-साथ जैसे-जैसे रिश्ते औपचारिक होते गए। होली की पुरानी परंपरा भी बदलती चली जा रही है।
*रिपोर्ट:- अनिल कुमार चंडौत*